ग़ज़ल ——–डॉ एम डी सिंह
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सच पूछे तो यह जिंदगी तेरी महबूबा है
सुन यार तू बेवजह संजीदगी में डूबा है
कभी मस्खरी तू ख़ुद की किसी रोज करके देख़
तब कहीं जानेगा कि तू भी एक अजूबा है
चल उठ कि यार तेरी भी जरूरत है सुबह को
कुछ तुझको भी बताने का उसका मंसूबा है
गर सोया रहा वक्त निकल जाएगा कहींऔर
उसके मुल्क़ में न जाने कितनों का सूबा है
इधर-उधर यहां-वहां जिसे ढूंढ रहा ऐ हिरन
किसी और का ना गाफ़िल, तेरा ही तूबा है
संजीदगी- गंभीरता
मस्खरी- किसी की हास्यप्रद नकल उतारना
अजूबा- आश्चर्यजनक चीज
मंसूबा -इच्छा
सूबा -राज्य
गाफ़िल -अनभिज्ञ
तूबा- बहुत अच्छी खुशबू
डाॅ एम डी सिंह महाराज गंज गाजीपुर ऊ प्र भारत