शिमला, 04 मार्च । न्यूज व्यूज पोस्ट – शिमला जिले में जल संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। जिला वेटलैंड प्राधिकरण और हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद द्वारा आयोजित कार्यशाला में उपायुक्त अनुपम कश्यप ने जिले की 9 प्रमुख झीलों के सीमांकन की घोषणा की।
संरक्षण के लिए बड़ा कदम
तानु जुब्बड़ और चंद्र नाहन झील का सीमांकन कार्य पूरा किया जाएगा, जबकि बराड़ा झील, कनासर झील और धार रूपिन की 5 अन्य झीलों को भी इस योजना में शामिल किया गया है। उपायुक्त ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वेटलैंड्स की स्पष्ट सीमाएं निर्धारित कर उन्हें संरक्षण की दिशा में कार्य करें।
स्थानीय सहभागिता से होगा जल स्रोतों का विकास
उपायुक्त ने कहा कि वेटलैंड संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी अनिवार्य होगी। इसके लिए पंचायत स्तर पर तालाबों के निर्माण व जीर्णोद्धार के लिए मनरेगा योजना का उपयोग किया जाएगा। खास बात यह है कि तालाबों में सीमेंट का न्यूनतम प्रयोग कर उन्हें प्राकृतिक स्वरूप में पुनर्जीवित किया जाएगा।
वेटलैंड संरक्षण क्यों है जरूरी?
कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने बताया कि आर्द्रभूमियां (वेटलैंड्स) जल शुद्धिकरण, भूजल पुनर्भरण, जलवायु संतुलन और जैव विविधता संरक्षण में अहम भूमिका निभाती हैं। हिमकोस्टे के वैज्ञानिक अधिकारी रवि शर्मा ने कहा कि वेटलैंड्स को “प्राकृतिक सुपरमार्केट” कहा जाता है क्योंकि ये कई प्रकार के जीव-जंतुओं और पौधों के लिए आश्रय स्थल होते हैं।
नियमों का पालन होगा अनिवार्य
कार्यशाला में जीआईजेड के सलाहकार कुणाल भरत ने वेटलैंड संरक्षण से जुड़े सरकारी आदेशों और नियमों की जानकारी दी। वरिष्ठ वैज्ञानिक रिशव राणा ने झीलों की सीमाएं निर्धारित करने की तकनीकी प्रक्रिया साझा की।
इस अवसर पर अतिरिक्त उपायुक्त अभिषेक वर्मा, उपमंडलाधिकारी (ना०) रोहड़ू विजयवर्धन समेत अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों का मानना है कि झीलों और वेटलैंड्स का सीमांकन एवं संरक्षण न केवल जल संकट को दूर करने में मदद करेगा, बल्कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी मजबूत बनाएगा। इस कदम से शिमला की जल-सम्पदा को दीर्घकालिक सुरक्षा मिलेगी और आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ एवं सुरक्षित जल स्रोत उपलब्ध होंगे।