हैदराबाद, न्यूज व्यूज पोस्ट।: भारत की औद्योगिक नीति को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप ढालने और बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से व्यापार एवं निवेश कानून केंद्र (CTIL) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ।
“भविष्य की दिशा तय करना: औद्योगिक नीति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा” विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में उद्योग, व्यापार और नीति विशेषज्ञों ने भाग लिया। एनएएलएसएआर विधि विश्वविद्यालय, बर्न विश्वविद्यालय के विश्व व्यापार संस्थान और डब्ल्यूटीओ भारत अध्यक्ष कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित इस सम्मेलन में औद्योगिक नीतियों के पुनरुत्थान, पीएलआई योजनाओं की भूमिका और वैश्विक व्यापार नियमों के साथ उनकी संगति पर विचार-विमर्श किया गया।
हरित औद्योगिक नीति और भारत की रणनीति
सीटीआईएल के प्रमुख प्रो. जेम्स जे. नेदुंपरा ने अपने स्वागत भाषण में नवाचार और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में हरित औद्योगिक नीति के महत्व को रेखांकित किया। एनएएलएसएआर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीकृष्ण देव राव ने औद्योगिक नीति को बदलते वैश्विक संदर्भ में अधिक लचीला और समावेशी बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
डब्ल्यूटीओ अपीलीय निकाय के पूर्व सदस्य श्री उजल सिंह भाटिया और प्रो. पीटर वांडेन बोशे ने व्यापार नीति और औद्योगिक नीति के बीच संबंधों पर अपनी राय रखी। पैनल चर्चाओं में उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं की प्रभावशीलता, ऊर्जा संक्रमण और समावेशी स्थिरता जैसे विषयों पर भी गहन चर्चा हुई।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका
सम्मेलन में भारत को एक मजबूत और तन्यकशील (Resilient) वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का केंद्र बनाने की रणनीति पर भी विचार किया गया। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि भारत को अपनी औद्योगिक नीतियों को और अधिक पारदर्शी और निवेश-अनुकूल बनाना होगा, ताकि विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सके और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिले।
ऊर्जा संक्रमण और औद्योगिक नीति
सम्मेलन में ऊर्जा संक्रमण को गति देने और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने जोर दिया कि भारत को हरित औद्योगिक नीति के तहत अक्षय ऊर्जा और डी-कार्बोनाइजेशन (Decarbonization) पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
डब्ल्यूटीओ नियमों के साथ सामंजस्य
औद्योगिक नीतियों को डब्ल्यूटीओ नियमों के अनुरूप बनाए रखने के लिए आवश्यक कदमों पर भी मंथन हुआ। विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया कि भारत को अपने औद्योगिक विकास लक्ष्यों को वैश्विक व्यापार अनुशासन के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
इस सम्मेलन से मिले विचारों और सुझावों से भारत की औद्योगिक नीति को और अधिक प्रतिस्पर्धी, नवाचार-प्रधान और सतत विकास उन्मुख बनाने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई कि यह संवाद भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।