हमीरपुर/ न्यूज व्यूज पोस्ट
आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते खतरे से जूझ रही है, ऐसे समय में हमारे पूर्वजों के पारंपरिक आपदा प्रबंधन के तरीके आधुनिक विज्ञान के लिए भी प्रेरणा बन सकते हैं।
यह कहना है हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला के गांव डुगली निवासी लेखक राजन कुमार शर्मा का। उनका मानना है कि आधुनिक तकनीक और संसाधनों के बावजूद भी आपदा प्रबंधन की असली जड़ें हमारे पुरखों की जीवनशैली और उनके अनुभवों में ही छिपी हैं।
प्रकृति के साथ संतुलन ही असली सुरक्षा
राजन कुमार शर्मा कहते हैं —
“हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल पहले ही यह सिद्ध कर दिया था कि प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर ही आपदाओं का सामना किया जा सकता है। चाहे बाढ़ हो, भूकंप हो या जंगल की आग — उनके पास हर आपदा से निपटने के व्यवहारिक उपाय थे। आज भले ही तकनीक आगे बढ़ गई है, लेकिन पूर्वजों की सीख आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।”
वे बताते हैं कि —
“स्थानीय संसाधनों का उपयोग, स्वदेशी ज्ञान, प्राकृतिक संकेतों की समझ और सामूहिक सहयोग — यही हमारे पूर्वजों की सबसे बड़ी ताकत थी। आज की युवा पीढ़ी को अपने इतिहास से सीख लेकर आपदा प्रबंधन की तैयारी करनी चाहिए।”
भविष्य के लिए सबक
लेखक का कहना है कि —
“केवल तकनीकी विकास से आपदा प्रबंधन संभव नहीं है। आवश्यकता है परंपरागत ज्ञान, स्थानीय संस्कृति और वैज्ञानिक सोच के बेहतर समन्वय की। तभी हम प्राकृतिक आपदाओं से जूझ सकेंगे और सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ सकेंगे।”