रामपुर बुशहर / विशेषर नेगी —
दुनिया की सबसे महंगी सब्जियों में शुमार औषधीय गुणों से
परिपूर्ण गुच्छियां मौसम अनुकूल होते ही निकलने लगे जंगलों में। गुच्छी
ग्रामीण बेरोजगारों के लिए आय का है वैकल्पिक साधन । गुच्छियां मार्च से
मई माह तक प्राकृतिक रूप से पनपती है जंगलों में । गुच्छी का प्रयोग
ग्रामीण लोग सब्जी के अलावा घरेलू दवा के लिए करते है इस्तेमाल । पंच
तारा होटलों में भी परोसी जाती है गुच्छी की महंगी सब्जी।
पहाड़ी इलाकों में बारिश होते ही इन दिनों जंगलों में
गुच्छी निकलने का क्रम तेजी से जारी हो गया हैं। मान्यता है कि बारिश के
साथ जितनी अधिक बादलों की गर्जना होती है उतनी अधिक गुच्छियां निकलती
है । गुच्छियां मार्च -अप्रैल महीने में जंगलों में प्राकृतिक रूप से
निकलती है। गुच्छियों के सीजन में ग्रामीण गुच्छियां खोजने के लिए दर-दर
भटकते है। ग्रामीण साधन हीन लोगो का यह आय का साधन भी है। गुच्छी को
दुनिया की महेंगी सब्जियों में शुमार किया जाता है । गुच्छी की मांग
पंचतारा होटलों में भी रहती है। इसके अलावा दवा के रूप में भी ग्रामीण
लोग इस्तेमाल करते है। यह स्वाद में बेजोड़ और कई औषधियों गुणों से भरपूर
है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भाषा में इसे ‘गुच्छी’,
छतरी, डुंघरू , किन्नौर में जांगनूच रामपुर व आस पास में जामचू व
चाऊं आदि नाम से जाना जाता है। जबकि गुच्छी का वानस्पतिक नाम
मोर्चेल्ला एस्कुलेंटा है। वैज्ञानिकों के अनुसार गुच्छी में
कार्बोहाइड्रेट की मात्रा शून्य होती है। यह हृदय रोग, नियूरेपिक, मोटापा
और सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों से लड़ने में रामबाण साबित होती है। इसका
इस्तेमाल कई घातक बीमारियों को ठीक करने वाली दवाइयों के निर्माण में भी
होता है।
किन्नौर तरांडा गाँव की रहने वाली पवन रेखा ने बताया गुच्छी
दुनिया की सबसे महंगी सब्जी है और यह हमारे इलाके में काफी पाया जाता है।
यह जंगलों में बहुत मुश्किल से मिलती है. मान्यता के अनुसार जब आसमान में
बिजली कड़कती है तो गुच्छी ज्यादा निकलती है। गुच्छी को मेडिसिन के रूप
में भी प्रयोग करते हैं। बुखार और निमोनिया में इस का प्रयोग करते हैं
जिससे कई बीमारियां दूर हो जाती है। कोरोना के लिए भी इसे उत्तम माना
गया है। मार्केट वैल्यू इस की 25 से 30 हजार रूपये किलो है। आजकल
ग्रामीण युवा जो बेरोजगार है जंगलों में जाकर इसे खोजते हैं और अपनी
आजीविका के साधन के रूप में अपनाते है।
किन्नौर के चौरा गाँव निवासी रतन चंद ने बताया कि चैत का महीना
लगा है गुच्छियां निकलना शुरू हो गए है और यह जेष्ट माह तक निकलती
रहती है। वर्तमान में गुच्छी की कीमत 8 से 18 हजार तक है। उन्होंने
बताया गुच्छियां सूखने के बाद काफी वेट कम हो जाता है / स्थानीय लोग
निमोनिया ,बुखार आदि ने भी दवाई के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
रामपुर निवासी नैना गुप्ता ने बताया इस बार पहले काफी सूखा मौसम
रहा, अब बारिश आते ही जंगलों में गुच्छियों का निकलना शुरू हो गया है।
बादलों के गरजते ही गुच्छियां। निकलना शुरू हो जाती है। लोग अब गुच्छियों को खोजने के लिए जंगलो की ओर निकल पड़े है। गुच्छियों को
ढूंढने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह बहुत महंगी सब्जी
है, पौष्टिक भी है और स्वास्थ्यवर्धक के साथ दवा के रूप में भी इसे
इस्तेमाल करते हैं।
रामपुर शनेरी निवासी उमा दत्त ने बताया कि हम गांव के लोग
गुच्छी सीजन शुरू होते ही जंगलो में गुच्छी उठाने जाते है। हालांकि
पहले सूखा पड़ा था तो गुच्छियां नहीं निकल रही थी। अब मौसम बरसते और
गर्जन के साथ ही गुच्छियां निकलने लगेगी। यह कुदरत की देन है और यह
बहुत महंगी सब्जी है इन्हे औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है-गुच्छी
ऊंचे पहाड़ी इलाके के घने जंगलों में कुदरती रूप से पाई जाती है।
-रामपुर धारा गौरा की आशा कुण्टू ने बताया आजकल गुच्छी का सीजन
चला है। पहले सूखे के चलते गुच्छियां नहीं निकली थी अब मौसम अनुकूल हुआ
है और वे गुच्छियां खोज कर अपना रोजगार चलाएंगे।