रामपुर बुशहर। न्यूज़ व्यूज पोस्ट—
सीटू से सम्बंधित सभी यूनियनों ने झाकड़ी, दत्तनगर, निरमण्ड, नीरथ व किसान मजदूर भवन चाटी में 1 मई को मज़दूर दिवस मनाया। इस अवसर पर मजदूरों को संबोधित करते हुए सीटू राज्य उपाध्यक्ष बिहारी सेवगी, जिलाध्यक्ष कुलदीप सिंह, नरेन्द्र देष्टा, राजकुमार, हरदयाल, अमित ने कहा कि मई दिवस दिवस का इतिहास बहुत ही पूराना हैं। मई दिवस या मजदूर दिवस की शुरूआत अमरीका में हुई थी, इसका मुख्य कारण मज़दूर आंदोलन था। क्योंकि अमेरिका में गृहयुद्ध के बाद मिल और कारखानों के मालिक मजदूरों से दिन 16 घंटे काम कराया करते थे और इसके विरोध में अमेरिकी National Labor Union ने अगस्त 1866 में अपने अधिवेशन में मांग रखी कि मजदूरों से केवल एक दिन में आठ घंटे ही काम कराया जाए, क्योंकि मजदूर कोई गुलाम नहीं हैं। अमेरिका के शिकागो शहर में 3 मई 1886 को लगभग 40 हजार मजदूर अपनी मांगे सरकार से मनवाने के लिए सड़कों पर उतर आए और पुलिस ने भुखे-प्यासे मजदूरों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया जिसमें 6 मजदूरों की मृत्यु हो गई, उन मजदूरों के साथियों ने खून से सने उन मजदूरों के कपड़ो को परचम बना कर आसमान की तरफ लहरा दिया और तब से ही लाल झण्ड़ा मजदूरों का प्रतीक बन गया।पुलिस द्वारा बेगुनाह मजदूरों पर की गई बर्बर कार्यवाही के मद्दे नजर 4 मई को शिकागो में मजदूरों के साथ-साथ आम जनता ने भी एक जुलूस निकाला। उस जुलूस में मिल मालिकों ने पुलिस के साथ मिल कर एक षड़यन्त्र रचा और जुलूसा के पीछे चल रही पुलिस की टुकड़ी पर देसी बम फिकवा दिया जिसमें एक पुलिस कर्मि की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गऐ । इसके बाद पुलिस ने जुलूस पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया और आन्दोलन के नेताओं को पकड़ कर फांसी पर चढा दिया गया, लेकिन मजदूरों का संघर्ष जारी रहा और अपने नेताओं के बलिदान के दिन 1 मई 1890 को स्मरण दिवस के रूप में मनाने का आहवाहन किया, बाद में यह मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 25 जुन 1886 को अमेरिकी कांग्रेस ने काम के समय को कम कर दिया और एक दिन में केवल आठ घंटे कार्य को मनजूरी मिल गई। यह मजदूरों की जीत का उत्सव है।हमारे देश की मौजूदा पूंजीपतियों की सरकार मजदूरों द्वारा संघर्ष से हासिल किए गए अधिकारों को छीनने का काम कर रही है जिससे देश की जनता के जीवन को संकट में डाल दिया है आज मजदूरों के अधिकारों को छीन करउन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में कार्य कर रही है व मजदूर विरोधी निर्णय ले रही है। पिछले सौ सालों में बने श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। दुनियाभर में मजदूरों ने जिन 8 घण्टे के अधिकार को हासिल किया उसे छीना जा रहा है और काम के घंटे को बढ़ाकर 8 से 12 किया जा रहा।आज आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोज़गार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में करोड़ों मजदूर बेरोज़गार हो गए हैं। मजदूरों को नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है।
