रिकांगपिओ (किन्नौर) विशेषर नेगी।
जब सपने देखने वाली आंखें ना भी देख सकें, तो क्या वे पूरे नहीं होते?
किन्नौर की वीरांगना छोंजिन अंगमो ने इस सवाल का जवाब माउंट एवरेस्ट की चोटी से दिया है – एक ऐसी जगह जहां पहुंचना दुनिया के गिने-चुने लोगों का ही नसीब होता है। मगर छोंजिन ने वहां पहुंच कर विश्व की पहली दृष्टिहीन महिला पर्वतारोही बनने का गौरव हासिल किया है।
चांगो गांव की यह 29 वर्षीय साहसी बेटी आज हर दिल में बस चुकी है। उसकी इस उपलब्धि पर न केवल घर-परिवार, बल्कि पूरा किन्नौर, हिमाचल और देश गर्व से झूम उठा है। गांव की गलियों में जश्न है, मां की आंखों में आंसू हैं – खुशी के, गर्व के, और उस संघर्ष की याद में जो उनकी बेटी ने मुस्कुराते हुए झेला।
छोंजिन अंगमो ने भावुक होकर कहा –
“मेरा सपना था माउंट एवरेस्ट को छूना… और मैंने उसे जी लिया। मेरी दृष्टिहीनता मेरी कमजोरी नहीं, मेरी ताकत बनी।”
छोंजिन की इस यात्रा में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का बड़ा योगदान रहा, जिसने इस अभियान को प्रायोजित किया। विशेष बात यह भी है कि छोंजिन खुद भी यूनियन बैंक में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा –
“बैंक ने सिर्फ मुझे स्पांसर नहीं किया, मेरे सपनों में यकीन दिखाया।”
19 मई 2025 की सुबह, ठीक 8:34 बजे, छोंजिन ने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा। उनके साथ थे दो अनुभवी गाइड – डांडू शेरपा और ओम गुरुंग, जिन्होंने इस कठिन अभियान में हर मोड़ पर उनका साथ निभाया।
छोंजिन की कहानी केवल एक पर्वतारोहण नहीं है – यह उस अडिग साहस, हौसले और आत्मबल की दास्तां है, जो कहती है कि “अगर दिल में आग हो तो अंधेरा भी रौशनी बन जाता है।”