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निकल पड़ा यायावर मन है

यायावर मन है ——

जीवन जग मे
अनहद मग में
निकल पड़ा यायावर मन है

पथ प्रांण है
दृश्य सखा है
लक्ष्य है दर्शन
पथी अथक यायावर मन है

भूख भाव है
तृष्णा भाषा
शब्द आकर्षण
गीत गढ़ रहा गगन
छंद घटक यायावर मन है

घोष दिशाएं
श्रुति सृष्टि है
मोहक लोक परलोक
सम्मोहित भटक रहा वह
घट-घट एकल-एकल
बेकल बहुत यायावर मन है

योग त्रिभुज
धारणा वृत्त
ध्यान केंद्र है
समाधि साक्षात्कार स्वयं से
जीव चेतना जीवन जगत
परम ब्रह्म है मुक्ति
मोक्ष लोलुप यायावर मन है।—डॉ एम डी सिंह

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