रामपुर बुशहर। न्यूज व्यूज पोस्ट/
रामपुर उपमंडल के दत्तनगर में रेत की खान में मिली मूर्ति को आखिर राजकीय महाविद्यालय रामपुर बुशैहर परिसर में स्थापित किया गया है। लगभग तीन माह पहले एक मूर्ति दत्तनगर में रेत की खान में रेत की खुदाई करते हुए प्राप्त हुई थी। इस जानकारी के प्राप्त होते ही राजकीय महाविद्यालय के डॉ. विपन शर्मा, प्रो. प्रतिबिन्द पाण्डेय, डॉ. अजेंद्र नेगी और प्रो. पनमा नेगी ने इसका निरीक्षण किया। निरीक्षण के पश्चात उन्होंने महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. पुष्पा नेगी को मूर्ति का महाविद्यालय परिसर में स्थानांतरण करने का सुझाव दिया। जिसके चलते इतिहास विभाग के निर्देशन में इसे महाविद्यालय परिसर में लाये जाने की कवायद शुरू हुई। महाविद्यालय प्रशासन ने उपमंडलाधिकारी रामपुर को इस विषय में लिखा। उनके सुझाव पर महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. पुष्पा नेगी ने प्रधान एवं उपप्रधान, ग्राम पंचायत दत्तनगर को मूर्ति के स्थानांतरण के लिए आग्रह किया। पंचायत की अनुमति से इस मूर्ति का स्थानांतरण महाविद्यालय परिसर में किया गया। मूर्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ. विपन शर्मा, सहायक आचार्य (इतिहास) एवं पुरातत्वविद, ने कहा कि यह मूर्ति चतुर्भुज भगवान विष्णु की है। हालाँकि ऊपर उठी दोनो भुजायें खंडित है तथापि निचली तरफ में दायीं भुजा के पास मानवरूपी चक्रदेवता एवम बायीं ओर मानवरूपी गदादेवी बनाई गई है। गले में वैजयंती माला शोभयमान है। सर पर भव्य मुकुट, कानो में कुंडल तथा लंबे केश मूर्ति की शोभा को बढ़ाते हैं। मुख के पीछे प्रभामंडल का अलंकरण है ये भी दायीं ओर से खंडित है। मूर्ति में भगवान विष्णु के वाहन गरूड़ को भगवान के चरणों के नीचे दर्शाया गया है। लगभग साढ़े पांच फुट ऊंची और ढाई फुट चौड़ी यह मूर्ति एक ही प्रस्तर को काटकर बनाई गई है। इसका भार लगभग छह सौ किलोग्राम है। मूर्ति के विषय में अधिक जानकारी देते हुए डॉ. विपन शर्मा कहते है कि सम्भवतः यह मूर्ति किसी मंदिर की वास्तुकला का भाग रहा है। इस मूर्ति के निचले भाग में इसे गाड़कर खड़े रखने के लिए आधार बना है। मूर्ति के पिछले भाग में भी ऐसे छेद खोदे गए है जिसके द्वारा मूर्ति को किसी दीवार में चिनवा सके। इसलिए यह मूर्ति किसी मंदिर की दीवार का हिस्सा रही होगी। मूर्ति में भगवान विष्णु के कान के समीप भी छिद्र है जिसमें सम्भवतः पुष्प माला या वस्त्र को लटकाया जाता होगा। इसकी ऐतिहासिकता के विषय में डॉ. शर्मा ने कहा कि यह मूर्ति जिस जगह से प्राप्त हुई है उसका व्यापक सर्वेक्षण किया गया। डॉ. विपन शर्मा एवं प्रो प्रतिबिन्द पांडेय ने वहां से कुछ प्राचीन मृदभांड के ठीकरे, ईंटो के टुकड़े भी प्राप्त किये है। स्तरविन्यास की जानकारी देते हुए ये बताते हैं कि मूर्ति किसी बाढ़ के कारण रेत में दब गई थी। उन्होंने आशंका जताई है कि मूर्ति किसी कारण खंडित हो गयी थी, जैसा कि खंडित मूर्ति की पूजा नहीं कि जाती जिस कारण उसका विसर्जन किया गया होगा। लेकिन कालांतर में किसी बाढ़ के कारण वह रेत में इतना नीचे दब गई थी। बाढ़ की पुष्टि लगभग दो फुट मोटी परत से होती है। इसी परत से बाकी पुरातात्विक साक्ष्य भी प्राप्त होते है। पुरातात्विक साक्ष्यों पर प्रकाश डालते हुए डॉ विपन शर्मा कहते हैं कि मृदभांड कुषाण काल से मिलना शुरू होते है। जो ईंटो के टुकड़े मिले हैं वो गुप्तकाल से राजपूत काल तक के है। कुछ मृदभांड के टुकड़े मध्यकाल के भी है। सभी साक्ष्य एक ही स्तर में मिल रहे हैं इसलिए मूर्ति कौन से काल की है समझना मुश्किल है। चूँकि मूर्ति कलात्मक दृष्टि से गुर्जर-प्रतिहार कला शैली से प्रभावित है इसलिए इसे कुषाणों या गुप्तों से सम्बंधित नहीं कह सकते, परंतु, ये लगभग एक हज़ार वर्ष पुरानी जरूर हो सकती है।
इतिहास विभाग के विभागध्यक्ष प्रो प्रतिबिन्द पांडेय ने इस मूर्ति के महाविद्यालय परिसर में स्थापित करने के लाभ के बारे में बताया कि इस मूर्ति के महाविद्यालय परिसर में स्थापित हो जाने से महाविद्यालय के छात्रों को विशेष लाभ होगा। मूर्तिकला की जिन विशेषताओं को जानने के लिए शिमला या चंडीगढ़ के संग्रहालय में जाने की जरूरत होती है उसे छात्र यहीं पर समझ सकेंगे। इतिहास विभाग में लगभग बारह सौ छात्र पढ़ते हैं और यह मूर्ति उन्हें विशेष लाभ देगी। इस मूर्ति को महाविद्यालय परिसर में स्थानांतरित करने में उपमंडलाधिकारी रामपुर, प्रधान एवं उपप्रधान ग्राम पंचायत दत्तनगर, महाविद्यालय प्राचार्या डॉ. पुष्पा नेगी, डॉ. विद्या बंधु नेगी डॉ. अनुरिता सक्सेना विभागाध्यक्ष इतिहास आर. के. एम. वी.शिमला, प्रो. कपूर चंद विभागाध्यक्ष राजनीतिक विज्ञान, महाविद्यालय प्रशासन एवं महाविद्यालय के स्नातकोत्तर (इतिहास) के छात्रों का विशेष योगदान रहा। महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ पुष्पा नेगी ने सभी का आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस तरह की धरोहरें हमारे इतिहास से जुड़ी हैं और इन्हें सहेजना हम सभी का दायित्व है। इस मूर्ति को परिसर में लाना एक आरम्भिक प्रयास है। हमारा लक्ष्य एक संग्रहालय स्थापित करने का है जिसमें कई पुरातात्विक वस्तुओं को संरक्षित रखा जाएगा।