प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार की नशामुक्ति केंद्र खोलने की नियत पर तीखी टिप्पणी करते हुए सकारात्मक सोच दिखाते हुए ताजा स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए। राज्य सरकार ने कोर्ट को केवल यह बताया कि सभी जिला अस्पतालों, नागरिक चिकित्सालयों और कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में नशामुक्ति सुविधाएं शुरू कर दी गई है। इसे कोर्ट ने इसे नाकाफी बताते हुए कहा कि सरकार की स्टेट्स रिपोर्ट से प्रतीत होता है कि इस मुद्दे से निपटने में सरकार कतई गंभीर नहीं है। इससे पहले सरकार ने नशामुक्ति केंद्र खोलने में बड़े पैमाने पर भूमि की आवश्यकता बताई थी। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि प्रदेश में नशाखोरी का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। सरकार से उम्मीद है कि वह नशामुक्ति में तेजी लाने के लिए नशामुक्ति केंद्रों की स्थापना करेगी। परंतु इसके लिए बड़े पैमाने पर भूमि की तलाश करने पर अड़ना सरकार की मंशा को जाहिर करता है। कोर्ट ने किन्नौर, लाहौल एवं स्पीति और बिलासपुर में नशा मुक्ति केंद्रों से जुड़ी स्टेट्स रिपोर्ट का अवलोकन करने के पश्चात सरकार को सकारात्मक सोच के साथ ताजा स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के आदेश जारी किए। कोर्ट ने वित्तीय तंगी के कारण नशामुक्ति केंद्रों की दयनीय स्थिति से जुड़े मामले में सरकार से पूछा था कि जहां एनजीओ संचालित नशामुक्ति केंद्र नहीं है, वहां क्या कदम उठाए जा रहे हैं। कोर्ट ने स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से यह बताने को भी कहा था कि नशा पीड़ितों को सरकारी अस्पतालों में कितने बिस्तर प्रत्येक जिले में उपलब्ध है। इस मामले में हाईकोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता) एवं निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता को भी प्रतिवादि बनाया गया है। । हाईकोर्ट ने अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए यह आदेश जारी किए। खबर मे बताया गया है कि हिमाचल को नशा मुक्त राज्य बनाने के राज्य सरकार के दावों के बावजूद, एकीकृत व्यसन पुनर्वास केंद्र की स्थिति एक अलग कहानी कहती है। जबकि कुल्लू (महिला), धर्मशाला, चंबा, मंडी, सिरमौर, बिलासपुर और सोलन में स्थापित केंद्र पहले अनुदान प्राप्त होने के बावजूद अभी तक चालू नहीं हुए हैं। 2019 में शिमला में शुरू किया गया 15 बेड का केंद्र बंद होने की कगार पर है क्योंकि पिछले चार वर्षों के दौरान केंद्र से अनुदान राशि प्राप्त नहीं हुई है। उक्त केंद्र नए मरीजों को जोड़ने की स्थिति में नहीं है। वेतन नहीं मिलने के कारण कर्मचारियों को भी छुट्टी पर जाना पड़ा है। किराए के भवन में स्थित होने के कारण यह केंद्र किराया, बिजली, पानी, टेलीफोन और इंटरनेट शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ है और इसके अलावा, पीड़ितों को दवा और भोजन उपलब्ध कराना मुश्किल हो गया है। ओपीडी और आईपीडी की सुविधा भी बंद कर दी गई है। खबर में यह भी बताया गया है कि इस केंद्र ने उच्च अधिकारियों के साथ अपनी चिंताओं को साझा किया है लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। प्रदेश में मादक पदार्थों की लत के मामले बढ़ रहे है।
प्रदेश में शिमला, कुल्लू, ऊना और हमीरपुर में 60 बिस्तरों की कुल क्षमता के साथ चार कार्यात्मक आईआरसीए हैं। अन्य तीन पूरी क्षमता से चल रहे हैं लेकिन इन्हें भी वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। मामले पर सुनवाई 2 अप्रैल को होगी।