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एनसीआर दिल्ली।चन्द्रकान्त पाराशर,
हरिद्वार/दिल्ली संस्थान द्वारा अल्टरनेटिव थेरेपी और वैदिक चिकित्सा के क्षेत्र में पिछले 25 वर्षों में दिए गए अतुलनीय योगदान को देश भर के न्यूरोथेरापिस्टों द्वारा सिल्वर जुबली महोत्सव-कार्यक्रम के रूप में 24 से 26 जनवरी 2025 तक हरिद्वार उत्तराखंड के जम्मू यात्री भवन में याद किया गया व संकल्प को दोहराया गया कि “हमारा उद्देश्य वैदिक चिकित्सा और न्यूरोथेरेपी को वैज्ञानिक तरीके से स्थापित करना और इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाना है ।”
आशा व्यक्त की कि नई पीढी के न्यूरोथेरेपिस्टों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा । इस कार्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों और चिकित्सा संस्थानों से जुड़े
देश के 22 राज्यों से 380 डेलिगेट्स/विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और इनमें से 30 प्रतिभागियों ने अपने अपने शोध-पत्र (रिसर्च पेपर)प्रस्तुत किए और उसमें से एक सर्वोतम शोध-पत्र को “डॉ अशोक निर्मला भथीजा “पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया गया।
न्यूरोथेरेपी चिकित्सा-पद्धति को मानव के स्वास्थ्य और देश की अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार बताते हुए राष्ट्रीय सेवा भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुधीर जी अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा,
“न्यूरोथेरेपी न केवल बिना दर्द इलाज प्रदान करती है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान दे रही है। यह चिकित्सा-पद्धति उन लोगों के लिए आशा की किरण बनकर उभरी है, जो लाइलाज बीमारियों से निराश हो चुके हैं।”
उन्होंने बताया कि सेवा भारती ने साल 2000 में न्यूरोथेरेपी प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, जो आज उनकी गाइडेंस में भारत और विदेशों में फैल चुका है। वर्तमान में देशभर में 10,000 से अधिक न्यूरोथैरेपीस्ट कार्य कर रहे हैं, जहां हर साल करीब चार लाख मरीज इस चिकित्सा प्रणाली का लाभ उठा रहे हैं।
इंस्टीट्यूट प्रधान व न्यूरोथेरेपी विशेषज्ञ रामगोपाल परिहार के अनुसार “इस पद्धति द्वारा मरीज़ को बिना किसी भी प्रकार की दवा खिलाए उसके रोगों का इलाज किया जाता है। शरीर पर लगभग 85 ऐसे प्वाइंट हैं जिन पर रोग के मुताबिक निर्धारित प्रेशर/दबाव देकर ब्लड के बहाव को तेज किया जाता है। ऐसा कर आर्गन या ग्लैंड में ब्लड की सप्लाई को सुचारु किया जाता है। आर्गन और ग्लैंड में ब्लड की सप्लाई का सुचारु न होना ही अधिकतर बीमारियों का कारण बनता है। इस पद्धति द्वारा ब्लड सर्कुलेशन को कंट्रोल कर विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान किया जाता है। पैर और जांघ पर विशेष जगह पर दबाब देकर ग्लैंड्स को स्टीमुलेट किया जाता है। न्यूरोथेरेपी में जहाँ बच्चों को हाथ के दबाव से ट्रीटमेंट दिया जाता है तो वहीं बड़ों को थेरापिस्ट अपने पैर के माध्यम से दबाव/ट्रीटमेंट देते हैं।”
इस अवसर पर डा० कृष्ण द्विवेदी, एस व्यास यूनिवर्सिटी बेंगलूरु, ने कहा कि,” इस अधिवेशन में डेलीगेट्स द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रोजेक्ट्स और उनके नतीजों को देखकर मैं हैरान हूं। यह चिकित्सा-पद्धति अत्यंत प्रभावी, कम लागत वाली और तुरंत राहत प्रदान करने वाली है। इस पर अभी तक पर्याप्त शोध और प्रकाशन कार्य क्यों नहीं हुआ, यह समझ से परे है।” साथ ही उन्होंने आशा व्यक्त की कि
वैदिक चिकित्सा पद्धति पर गहन शोध और प्रभावी प्रचार-प्रसार से दुनिया को स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिलेगा नया समाधान ।
विशेष रूप से न्यूरोथेरेपी जैसी भारतीय वैदिक चिकित्सा पद्धति के उत्साहपूर्ण सकारात्मक परिणामों की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए उन्होंने बताया, “इस भारतीय वैदिक चिकित्सा पद्धति को दुनिया के सामने लाना बेहद जरूरी है। रिसर्च के माध्यम से यह और भी बेहतर तरीके से प्रदर्शन करने में सक्षम होगी। हमारा संस्थान और विश्वविद्यालय कई वर्षों से ऐसी पद्धतियों पर कार्य कर रहे हैं और हम इस दिशा में सहयोगात्मक प्रोजेक्ट्स के लिए शोध डिजाइन करने में मदद करेंगे”
इस सिल्वर-जुबली महोत्सव-कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा भारती के-सुधीर जी, राष्ट्रीय संगठन मंत्री; डॉ. कमलेश व एन, वाईस चांसलर गांधीनगर विश्वविद्यालय; डॉ कृष्णा द्विवेदी एस व्यास विश्वविद्यालय, डॉ. अनिल जोगी, डीन, योग -नेचुरोपैथी माधव यूनिवर्सिटी ,अजय गांधी ने विशेष रूप से अपनी अपनी प्रतिभागिता देकर आने वाली युवा-पीढ़ी की हौसला अफजाही की ।