किन्नौर। विशेषर नेगी—-
वर्षो से फाइलों में दफन वनाधिकार अधिनियम के मामलों में अब जनजातीय लोगो को मिलने लगे वन भूमि के मालिकाना हक़। जिन जनजातीय लोगों ने दिसम्बर 2005 से पूर्व वन भूमि पर जीवन यापन के लिए किया था कब्जा । वे लोग इस कानून में मालिकाना हक पाने के थे पात्र। उपायुक्त किन्नौर आबिद हुसैन सादिक ने आज वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत पूह उपमण्डल के मालिंग गांव के 5 लाभार्थियों को भूमि के पट्टे प्रदान किए। ज़िले में एफआरए के तहत हुई यह पहली शुरुआत।
जिले के लिए आज का दिन बना अविस्मरणीय । जनजातीय किन्नौर जिला के लोग पिछले लगभग 16 वर्षों से एफ.आर.ए के तहत भू-पट्टे मिलने का इंतजार कर रहे थे। जिले के लोगों की मांग पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जिला स्तरीय समिति को इस पर शीघ्र निर्णय लेने के निर्देश दिए थे। उसी क्रम में आज 5 पात्र लाभार्थियों को पट्टे प्रदान किए गए।
उपायुक्त आबिद हुसैन सादिक ने बताया कि वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत ग्राम व उपमण्डल स्तर पर कमेटियों का गठन किया गया था जिनकी संस्तुति पर जिला स्तरीय कमेटी ने 5 पात्र व्यक्तियों को पट्टे प्रदान करने का निर्णय लिया गया। निकट भविष्य में ऐसे अन्य सभी मामलों जिन्होंने सभी प्रकार की औपचारिकताएं पूर्ण की हैं को भी पट्टे प्रदान कर दिए जाएंगे।
इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश वन विकास निगम के उपाध्यक्ष सूरत नेगी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का किन्नौर जिले की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने ज़िला प्रशासन को भी इस दिशा में किए गए प्रयासों के लिए बधाई दी और कहा प्रशासन के सकारात्मक प्रयासों के कारण आज जिले के लोगों को भूमि का मालिकाना हक़ प्राप्त हो सका।
उल्लेखनीय हैकि आदिवासियों एवं अन्य परंपरागत वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय (Historical injustice done to tribals and other traditional forest dwellers) से उन्हें मुक्ति दिलाने और जंगल पर उनके अधिकारों को मान्यता देने के लिए संसद ने दिसम्बर, 2006 में अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून { The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006, पास किया था। जिसे केन्द्र सरकार ने इसे 1 जनवरी 2008 को नोटिफाई कर जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया। वनाधिकार कानून 2006 के अनुसार 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व वन भूमि पर काबिज अनुसूचित जनजाति के सभी समुदायों को वनों में रहने और आजीविका का अधिकार मिला , कानून की धारा 2 (ण) के अनुसार अन्य परम्परागत वन निवासी को अधिकार के लिए (उक्त अवधि से पहले वन क्षेत्र में काबिज रहे हो) तीन पीढ़ियों (एक पीढ़ी के लिए 25 साल) से वहां रहने का साक्ष्य प्रस्तुत करना है।
कानून में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि धारा 3 (2) के तहत वनग्रामों के विकास के लिए यानी विद्यालय, अस्पताल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान, पेयजल, सड़क, सामुदायिक केन्द्र आदि के लिए वन भूमि के परिवर्तन का उपबंध किया जाएगा, जिसके तहत प्रति हेक्टेयर 75 तक पेड़ों को गिराया जा सकता है। निश्चय ही इस प्रावधान से वन पर आश्रित समुदाय के विकास के लिए नए रास्ते खुलें है। इस अधिनियम का हिमाचल में विकास कार्यो में तो सहारा लिया जाता रहा लेकिन व्यक्तिगत दावों पर अब तक अड़चन डाला गया। अब 5 लोगो को पट्टा मिलते ही शुरुआत हुई है।