धर्मशाला। न्यूज व्यूज पोस्ट।
हिमाचल प्रदेश की राजनीति और न्याय व्यवस्था आमने-सामने आ गई है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने न्यायिक कार्य में हस्तक्षेप के आरोप में प्रदेश सरकार के आयुष, विधि एवं कानूनी, युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने के निर्देश दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि प्रथम दृष्टया यह कार्य न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप के समान प्रतीत होता है।
दरअसल, मामला जिला कांगड़ा के जयसिंहपुर में न्यायालय परिसर के निर्माण को लेकर उठा है। बार एसोसिएशन जयसिंहपुर ने जनहित याचिका दाखिल कर न्यायालय के लिए चिन्हित भूमि को अनुपयुक्त करार दिया है। प्रशासनिक न्यायाधीश की जांच रिपोर्ट ने भी इस दावे की पुष्टि कर दी है।
विवाद तब और गहरा गया जब स्थानीय विधायक एवं आयुष मंत्री ने न्यायालय परिसर के स्थान को छोड़कर राजस्व विभाग के लिए भवन निर्माण की आधारशिला रख दी। याचिकाकर्ता का आरोप है कि यह कार्य न्यायिक आदेशों की अवहेलना और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप है।
हालांकि कोर्ट ने शुरूआत में अवमानना का नोटिस जारी किया था, लेकिन महाधिवक्ता के अनुरोध पर इसे वापस लेकर सामान्य नोटिस जारी किया गया। अब मंत्री को हलफनामे के माध्यम से न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखना होगा।
यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक दबाव की नई मिसाल बनता जा रहा है। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि न्यायालय परिसर के निर्माण से जुड़ा अंतिम निर्णय कानून के अनुसार ही होगा, न कि राजनीतिक हस्तक्षेप के आधार पर।