रामपुर बुशहर। विशेषर नेगी,
ग्रामीण उत्पादों को खासकर मोटे अनाज से बने पकवानों को पहचान दिलाने में अंतरराष्ट्रीय लवी मेला बना मददगार। स्वयं सहायता समूह से जुड़ी ग्रामीण महिलाएं विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर लोगों को बता रही है विलुप्तप्रा पारंपरिक अनाजों के महत्व को। इस तरह चीड़ की पत्तियों का किस तरह से सदुपयोग कर बनाए जा सकता हैं दैनिक उपयोग का सामान यह भी दर्शा रही है समूह से जुड़ी महिलाएं । इन पारंपरिक जैविक पकवानों और चीड़ की पतियों के उत्पादों को देख लोग हो रहे हैं आकर्षित। खपत बढ़ते देख महिलाओं में भी बढ़ा है आत्मविश्वास
शिमला जिला के रामपुर बुशहर में चल रहे अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में मोटे अनाजों से बने पकवानों की मांग तेजी से बढ़ने लगी है। ऐसे में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओ में स्वरोजगार के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा है। अब उन्हें उम्मीद है कि इन अनाजों की बड़े स्तर पर बुवाई कर आने वाले समय में इसे स्वरोजगार के लिए विकल्प के रूप में अपना सकते हैं । क्योंकि महिला समूहों को इन के काफी आर्डर लोगो से मिलने लगे है। इसी तरह चीड़ की पत्तियों से बनी दैनिक उपयोग की वस्तुएं बनाकर जहां जंगलों को आग से बचाने का महिलाए काम कर रही हैं । वहीं यह पतियां आय का स्त्रोत बन रही है।
रामपुर के दूर दराज 15/20 क्षेत्र के कांदरी गांव की रोहिणी मेहता ने बताया अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्टॉल लगाया है। काफी सारी ग्रुप की महिलाओं ने एकत्रित होकर कई प्रकार के मोटे अनाजों को लाए है, उनसे बने पकवान भी तैयार कर रहे हैं । लोग इन पकवानों को बहुत पसंद कर रहे हैं। पहले उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इसका किस तरह का लोगों में संदेश जाएगा। लेकिन मोटे अनाज से बने पकवानों की मांग को देख वे उत्साहित हुए हैं। उन्हें लोगो से ऑर्डर भी मिल रहे हैं । ऐसे में वे अब गांव जाकर अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करेंगे कि स्वरोजगार के लिए मोटे अनाज की बुआई करे।
शिंगला गांव की कांता ने बताया कि वे चील की पत्तियों से प्रोडक्ट बना रहे है और मेला मैदान में बेच रहे हैं । चीड़ की पत्तियां जंगल से उठाकर लाने से एक तो जंगलों में आग का खतरा कम हो जाता है दूसरा इससे वे कई तरह के सुंदर आकर्षक सामान बना सकते हैं । इस से उन की आमदनी भी बढ़ेगी।
कॉलेज छात्रा दीपिका नेगी ने बताया कि वह मेला मैदान में आई है। चीड़ की पत्तियों से बने आइटम्स को देखकर काफी प्रभावित हुई है । सुंदर-सुंदर सामान बनाए जा रहे हैं। वैसे भी हर साल जंगलों में आग लग जाती है, जिसमें चीड़ की पत्तियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अगर चीड़ की पत्तियां ना हो तो आग पर भी काबू पाया जा सकता है ।
कुल्लू बंजार के रहने वाले ठाकुरदास ने बताया कि आज से 3 वर्ष पूर्व अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा मेले में पारंपरिक अनाजों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया था। बल्कि कोदे की चाय लोगों को मुफ्त पिलाई। लेकिन आज खुशी होती है कि इसके बड़े स्तर पर प्रचार हुआ है। लोग कोदे को काफी पसंद कर रहे हैं । उन्हें खुशी है कि मोटे अनाजों को अब लोग तवज्जो दे रहे हैं और यह खुशहाल एवं स्वस्थ जीवन जीने का एक मार्ग है।
पर्यावरणविद् एवं हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने बताया कि पर्यावरण व स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आज चिंता करने की जरूरत है। गांव के उत्पाद पारंपरिक जैविक उत्पाद कैसे उन्हें कैसे मंडियों तक पहुंचाएं, कैसे संरक्षित करें। इस पर चर्चा करने की जरूरत है। तभी हमारा पर्यावरण भी बचेगा और किसान भी सशक्त बनेगा।
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