मंडी, । न्यूज़ व्यूज पोस्ट: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने क्रैक-फ्री टंगस्टन डाइसल्फ़ाइड (डब्ल्यूएस2) मोनोलेयर प्राप्त करने की प्रक्रिया विकसित की है। इसके लिए ग्रोथ सब्सट्रेट, थर्मल स्ट्रेस और त्रुटियों की भूमिका का परीक्षण किया है। परीक्षण के परिणाम रसायनिक वाष्प जमाव (सीवीडी) से उत्पन्न 2 डी सामग्रियांे की त्रुटियां कम करने का प्लैटफॉर्म प्रदान करता है जिनका फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, न्यूरोमॉर्फिक उपकरणों और सेंसर जैसे व्यावहारिक उपयोग होंगे।
शोध के निष्कर्ष एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स इंटरफेस में प्रकाशित किए गए थे। इस शोध के प्रमुख डॉ. विश्वनाथ बालकृष्णन और सहयोगी उनकी छात्रा दिव्या वर्मा, पवन कुमार और दीपा ठाकुर हैं। परीक्षण के साथ ही, डेंसिटी फंक्शनल थ्योरी (डीएफटी) सिमुलेशन किए गए जिनमें प्रो. चंद्र सिंह, टोरंटो विश्वविद्यालय और डॉ. शंखा मुखर्जी, आईआईटी खड़गपुर का सहयोग रहा है। प्रोजेक्ट का वित्तीयन एमएचआरडी-स्टार्स, इंडिया और कनाडा प्राकृतिक विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद (एनएसईआरसी) ने किया।
परमाणु स्तर पर बारीक डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर अपने प्रत्यक्ष बैंडगैप, उच्च गतिशीलता मानक और विभिन्न कार्याें के लिए विषम एकीकरण का प्लैटफॉर्म प्रदान करने की क्षमता को लेकर व्यापक स्तर पर जाना जाता है। लेकिन इन मोनोलयर्स का उपयोग कर 2डी सामग्रियों का उपकरण निर्माण की अपनी सीमाएं हैं क्योंकि मोनोलेयर्स का व्यापक और केैक-फ्री विकास करना कठिन है। हालांकि, आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने यह प्रदर्शित किया है कि यदि सीवीडी का विकास सफायर जैसे उपयुक्त सब्सट्रेट पर किया जाए तो डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर की त्रुटियों और रिक्तियों के बावजूद क्रैक होने से बचा जा सकता है।
शोध की अहमियत बताते हुए डॉ. विश्वनाथ बालकृष्णन, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने कहा, “हमारी टीम ने विभिन्न सब्सट्रेट पर उत्पन्न डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर में क्रैक की गंभीर स्थिति दर्शाने के लिए सुव्यवस्थित परीक्षण किया है। इसके तहत थर्मल मिसमैच स्ट्रेस, सबस्ट्रेट-मोनोलयर बाइंडिंग एनर्जी और डिफेक्ट-मेडियेटेड वॉयड फॉर्मेशन की मौजूदगी को आपस में जोड़ कर देखा गया।
इस सिलसिले में डॉ. विश्वनाथ बालकृष्णन ने कहा, ‘‘हम ने यह दिखाया है कि यदि सीवीडी का विकास एक उपयुक्त सब्सट्रेट पर करें तो क्रैक पैदा होने से बचाव संभव है चाहे डब्लूएस2 मोनोलेयर में त्रुटियां और खालीपन हो और हम ने यह जानकारी दर्ज की है कि डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर यदि सफायर सब्सट्रेट पर उत्पन्न करें तो डब्लूएस2 मोनोलेयर के वॉयड में दरार नहीं दिखते हैं क्योंकि इस स्थिति में डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर में कंप्रेसिव रेजिडेंशियल स्ट्रेस पैदा हो जाता है।’’
डब्ल्यूएस2 का बढ़ना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वृद्धि का तापमान, ग्रोथ सब्सट्रेट और त्रुटि पैदा होना इसकी यांत्रिक स्थिरता को प्रभावित करते हैं। सब्सट्रेट बढ़ने के दौरान रिजाइडुअल स्ट्रेस पैदा करता है और प्रभाव बदल सकता है क्योंकि विभिन्न सामग्रियों के लिए थर्मल विस्तार गुणांक अलग-अलग होगा। इसलिए क्रैक-फ्री मोनोलेयर प्राप्त करने के लिए थर्मल मिसमैच स्ट्रेस और सब्सट्रेट एवं मोनोलेयर के बीच बंधन ऊर्जा का अनुकूलन आवश्यक होता है।
शोध के बारे में दिव्या वर्मा, रिसर्च स्कॉलर, आईआईटी मंडी ने बताया, “सफायर सब्सट्रेट पर उत्पन्न डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर में वॉयड या त्रुटियां हो सकती हैं फिर भी यह फ्रैक्चर नहीं होगा क्योंकि यह डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर में कंप्रेसिव रिजाइडुअल स्ट्रेस पैदा करता है। यह बिना दरार व्यापक स्तर पर डब्ल्यूएस2 मोनोलेयर के विकास में महत्वपूर्ण होगा जिसमें त्रुटि की इंजीनियरिंग संभव है ताकि यांत्रिक विश्वसनीयता कायम रखते हुए उपयोगिताएं बढ़ाई जा सके।”
टीम ने पूरा ध्यान मुख्य रूप से सीवीडी प्रसंस्कृत बड़े पैमाने पर 2 डी सामग्री विकसित करने और ट्रांजिस्टर, मेमरिस्टर और फोटोडेटेक्टर के कार्यों को प्रदर्शित करने पर है। हालांकि, निकट भविष्य में इस तरह के उपकरणों का प्रोटोटाइप तैयार करने और विषम एकीकरण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अन्य आईआईटी, आईआईएससी बंगलुरु के विशेषज्ञों का सहयोग अपेक्षित होगा।.